पिछले दिनो इसी ब्लाँग साइट पर एक साथी ब्लाँगर का मै ब्लाँग पढ रहा था।मदर्स डे के मोके पर लिखा गया ब्लाँग मा के विषय मे लिखा गया था।ब्लाँग हालाकि लिखा तो व्यापक मुद्दे पर गया था लेकिन लेखक की मानसिकता मानो उस वक्त मा मयी नही हो पायी थी ईसलिये उथले रुप मे छोटा सा लेख लिखकर छोड दिया गया मैने उसे पढकर सोचा था कि आगे मै कुछ लिखने की कोशिस करूँगा।लेखक तब बहुत अच्छा लिख लेता है जबकि घटनाये उसके उपर से गुजरी हो।उस लेख ने मुझे ईस शीर्षक से एसा जोडा कि आम जीवन की नयी और पुरानी घटनाये दिमाग के कोने मे इकट्ठा हो गयी जो की बिल्कुल वास्तविक थी।
रात को सोते से मेरी आँखे खुली तो मैने झुझलाकर पत्नि की तरफ देखा।वो बडी तल्लीनता के साथ मेरे नवजात बच्चे का नेपकिन बदलने मे तल्लीन थी।मुझे झूझलाया देखकर वो इतमिनान के साथ बोली,"पेशाब कर दिया था अब रोना बन्द कर देगा आप आराम से सो जाओ"बच्चे का तो काम रोज पेशाब करने का था और सारी सारी रात रोने का तो आम था।उसके बावजूद उसके चेहरे का इतमिनान देखकर मेरी झुझलाहट तो गायब हो ही गयी लेकिन जब गीले हिस्से से बच्चे को उठाकर खुद वह गीले मे इतमिनान से लेट गयी तो मै हीन भावना से भर उठा।आध्यात्म की एसी बरसात हुइ कि मन अतीत के उस बिन्दु पर पहुँच गया जब मै खुद बच्चा था।मा दिनभर मुझे तथा सब भाइ बहनौ को एसे रखती जैसे वो कोइ अबोध बालक हो ओर हम उसके अनमोल आकर्षक खिलोने।सुबह चार बजे से उठकर पहले परिवार के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करती और फिर अपनी सारी ममता को एकजुट करके हमारे रख रखाव मे लीन हो जाती।खाने के समय उसकी कौशिश होती कि हमे सारा खाना खिलादे।अपने लिये कोइ चिन्ता नही।क्इ बार सब्जी खत्म हो जाती लेकिन सन्तुष्टि भगवान से दो हाथ आगे।हम उस वक्त बहुत छोटे थे ।सोचते थे कि मा का दायित्व उस दिन शायद खत्म हो जायेगा जबकि हम बडे हो जायेगेँ।लेकिन हमारे धैर्य ओर उम्मीद से मा के दायित्व आज तक आंके नही जा सके आज मेरी मा बूढी हो चुकि है और हम बच्चो के बाप लेकिन मा कि नजर मे मानो आज भी हम छः माह के अबोध है।क्इ बार मैने अपनी मा को अपनी लेखनी के आयने से देखने की कोशिश की लेकिन हर बार लेखनी की क्षमता मा की ममता नापने से चूक जाती रही।