देश मे कभी जब अग्रेजो की सरकार रही होगी तब के लोग जाने की उनका शासन केसा रहा होगा1लेकिन किवद्ति बन चुकि उस सरकार के काम करने के तरीके वाकई लाजवाब रहे होगे वरना आजाद भारत के लोग आज 150 साल गुजरने के बाद अपने देश की अपनी सरकार से यू नाउम्मीद न हो गये होते1हर कही आते जाते,चोपलो पर ,बस मे,ओर हर उस जगह जहा ज्यादा लोग जमा हो बस ये जुमला न सुनने को मीलता की भारत मे बस एक ही चीज ह जोकि चर्चा के काबिल ह ओर वो ह अव्य्वस्था1मुझे भी एसा ही लगता ह1लेकिन अगर एसा ह भी तो क्या किया जाय1थाने मे काम को जाते ह तो बिन दान दिये कोई काम होना मुश्किल ह1रेल मे शफर करना हो तो बिन पेसे दिये जगह मिलना नामुमकिन1दफ्तर जाओ तो बाबु की सेवा जरूरी1सब तरफ जहा नजर जायगी यही होगा1उसके बावजूद भी जीवन रूक तो नही ही जायगा1घर मे राशन जितना भी आ रहा ह आ ही रहा ह जा तो नही रहा1दफ्तरो मे बाबु लोग आपके इन्त्जार मे दिन गुजार देते ह कभी घर खाली हाथ भी आना हो जाता ह1राह बना रहे लोग अगर कोलतार की जगह सीरा इस्तेमाल कर रहे ह तभी क्या गजब हो गया वो भी तो फ्री नही आ रहा1 ओर भी एसी बहुत सी जगह काम ओर मुद्दे ह जिनमे हम कमी तलाश ही लेगे लेकिन वास्तव मे उसमे कमी बस इतनी सी ह कि हम सरकार को अपने द्वरा चुनी गैइ सस्था मान लेते ह 1सब चीजे हजारो बार कही जा चुकि ह1सरकारी दफ्तर या लोग अगर नही सुधर सकते तो1एक ही चीज बाकी रहती कि समझोता कर लिया जाये1हालातो से उन सबके जहा से की हमारा रोज वास्ता बनता ह1
Mere pas dheron nai nai baten hai jinse aap sabko parichit karana chahta hun.suniye....
Saturday, October 3, 2015
फिल्मे समाज का आइना होती हे1'वास्तव' फिल्म जहा हालात के हाथो मजबूर एक शरीफ कामकाजी आदमी को अपने वास्तविक समाज से बेदखल कर जरायम की दुनिया मे पेबस्त करने का सन्देश देती हे1वही एक आम सी अदना सी कम खर्च वाली जोली एल एल बी फिल्म हमारी न्यायिक व्य्वस्था के भीतर लगी दीमक से हमे रूबरू कराती हे1 एसे ही ओर न जाने कितनी फिल्मे बन चुकि ओर बनने को लगातार जारी हे जिन्होने व्य्वस्था के हर स्वरूप के भीतर फेली अव्य्वस्था को पूरी ईमानदारी के साथ कलात्मक रूप मे हमारे सामने उजागर करते हे1चला मुसद्दी ओफिस ओफिस भी उसी की बानगी बानगी भर ह1लेकिन सिनेमा होल मे जब हम फिल्म को देख रहे होते हे जोली एल एल बी का त्यागी हो या चला मुसद्दी का मुसद्दी लाल सबके भीतर हमे अपना अक्स दिखाई देता ह1आखिर क्यो? यही वो अहम सवाल हे जोकि ईन फिल्मो के निर्मान हेतु किसी जज्बाती आदमी को प्रेरित कर्ता हे कि चलो अदालतो मे न्याय के नाम पर गरीबो मजलूमो को जो सालो साल कुत्ते की तरह यहा से वहा दुत्कार खाने को मजबूर किया जा रहा हे जो नही हुआ उसे साबित करने की जो कलाकारी वहा चल रही ह1 उसे समाज के सामने कुछ यू भावनात्मक रूप मे पेश किया जाय जिस्से कि आम आदमी के भीतर सोई चिगारी को कुछ हवा मिले वरना रोज कही न कही वो सब होता तो हमारे साथ ही ह
caroption
दोबारा मुझे मेरा ब्लोग मिला बहुत दिन से दिल के भीतर भाव्अनाए उद्गार के रुप मे कलम के जरिये बाहर निकलना चाह रहे थे1तबसे आज तक समाज मे बहुत बद्लाव भीआय हे1थानो मे गरीब को सिकायत सुने बिना जाने कितनी बार भगाया गया होगा1अदालतो मे जाने कितने बेकसुरो को सजा सुनाइ गई होगी1चोपाले चोराहो पर तो व्य्वस्था को लेकर चर्चा हमेशा जारी रहेगी1लेकिन फायदा क्या जब तक कुछ सकारात्म्क न लिख जाये 1
Subscribe to:
Posts (Atom)