फिल्मे समाज का आइना होती हे1'वास्तव' फिल्म जहा हालात के हाथो मजबूर एक शरीफ कामकाजी आदमी को अपने वास्तविक समाज से बेदखल कर जरायम की दुनिया मे पेबस्त करने का सन्देश देती हे1वही एक आम सी अदना सी कम खर्च वाली जोली एल एल बी फिल्म हमारी न्यायिक व्य्वस्था के भीतर लगी दीमक से हमे रूबरू कराती हे1 एसे ही ओर न जाने कितनी फिल्मे बन चुकि ओर बनने को लगातार जारी हे जिन्होने व्य्वस्था के हर स्वरूप के भीतर फेली अव्य्वस्था को पूरी ईमानदारी के साथ कलात्मक रूप मे हमारे सामने उजागर करते हे1चला मुसद्दी ओफिस ओफिस भी उसी की बानगी बानगी भर ह1लेकिन सिनेमा होल मे जब हम फिल्म को देख रहे होते हे जोली एल एल बी का त्यागी हो या चला मुसद्दी का मुसद्दी लाल सबके भीतर हमे अपना अक्स दिखाई देता ह1आखिर क्यो? यही वो अहम सवाल हे जोकि ईन फिल्मो के निर्मान हेतु किसी जज्बाती आदमी को प्रेरित कर्ता हे कि चलो अदालतो मे न्याय के नाम पर गरीबो मजलूमो को जो सालो साल कुत्ते की तरह यहा से वहा दुत्कार खाने को मजबूर किया जा रहा हे जो नही हुआ उसे साबित करने की जो कलाकारी वहा चल रही ह1 उसे समाज के सामने कुछ यू भावनात्मक रूप मे पेश किया जाय जिस्से कि आम आदमी के भीतर सोई चिगारी को कुछ हवा मिले वरना रोज कही न कही वो सब होता तो हमारे साथ ही ह
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