Tuesday, November 22, 2011

कुत्ता मेरा

ठंड का मोसम चल रहा था।जनवरी का महीना।रात के दस बजे मै अपनी बैठक मे रजाई मे पडा डिबिया की रोशनी मे गोर्की को पढ रहा था।हमारी बैठक गाँव के मुख्य रास्ते पर है ईसलिये रात के दस बजे तक वहाँ लोग बैठकर देश दुनिया के विषय मे खूब बेपर की उडाया करते है।गाँव की जिन्दगी का यह भाग ही मुझे सबसे लुभावना लगता है।जैसे ही लोग सोने के लिये उठे मै किताब लेकर पढने मे मशगूल हो गया।दस बजे तब जाडे की रात मे सडक पर थोडी बहुत आवाजाही चल रही थी।उसी आवाजाही मे गाँव का एक आदमी जो दारु पिये था अचानक मेरे पास आ धमका।उसके पाँव कही-कही पड रहे थे।बिना बोले उसने एक कुत्ते का बच्चा मेरी गोद मे रख दिया।वह पानी मे भीगा हुआ था।बेचारा ठंड मे मर जायेगा-उसने कहा और चला गया।बच्चा धीरे से मेरी रजाई मे घुसकर आराम से सो रहा मानो यह बिस्तर उसी का था।उसके हालात पर जो दया मन मे पैदा हुई थी उसने उस पिल्ले के साथ मेरे सम्बन्धो के तार जोड दिये।अब यह रोज का नियम हो गया वह दिनभर चाहे जहाँ रहे एक तो तीन वक्त खाने के लिये घर पहुँच जाता और रात को मेरे बिस्तर मे।उसने मुझे समाज के ताने बाने से योंहि रुबरु करा दिया।कुछ ही दिन मे उसने खुद को परिवार का सदस्य साबित कर डाला।सदस्य भी वह नामभर का नही था वह अपने कर्तव्यो का निर्वाह करता जो खुद उसी ने तय कर लिये थे।सुबह वह मेरे साथ खेत पर जाता ओर पूरे दिन घर और बैठक कि रखवाली करता।उसके भोकने तथा साथ रहने के एसे अन्दाज थे मानो रोटी के कर्ज से वह मुक्त होना चाह रहा हो। आम कुत्तो की तरह सूखी रोटी न खाता था।सब्जी या दूध मे डालकर रोटी देनी पडती।कम समय मे ही उसने लोगो मे एसी दहशत पैदा कर दी के मेरी बैठक पर अजनबी आदमी पाँव नही रख सकता था।कहते है कुत्ते की उम्र 12 साल होती है।उस का साथ ईतना अच्छा रहा के वक्त का पता ही न चला।कल घर मे जिक्र था के हमारा कुत्ता जाने कहाँ चला गया।घरवाले सम्भावना जता रहे थे के बेचारा मर गया होगा।
पिछले दस दिन से वह बिमार था बुढापा उसके शरीर से टपकने लगा था।आदमी की तरह सठिया भी गया था।किसी के भी घर घुस जाता। लोग उसे दुत्कारते तौ मुझे तरस आता।आज जब घर वालो ने उसकि मोत की सम्भावना जताई तो ख्याल आया के पीछले काफी समय से वह दिखाई नही दिया था।उसके जाने के बाद मै महसूस करता हूँ के उसकी जगह हमारे दिल के एक कोने मे ठीक वैसे थी जैसे घर के बाकि लोगो के लिये।

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