भारत को मैने आधी दुनिया की संज्ञा एसे ही नही दे दी थी।भारत भोगोलिक तथा सांसक्रतिक द्रस्टि से एक राष्ट्र मात्र नही है।न ही ईसे एकल समाज कहना तर्क संगत है।यहाँ की ईंच इँच माटी की अपनी अलग नियती और अलग आदते है।हर क्षेत्र के अपने सरोकार इस कदर बट गये है कि गाहे बगाहे क्षेत्रवाद की भावना अब मजबूती के साथ सिर उठाने लगी है।काम के सिलसिले मे मैने भारत के एक बडे भाग की नब्ज को अपने हाथो से छुआ और कम्पन की बढती तिव्रता को महसूस किया।अभी हाल ही मे उस भावना की बानगी क्ई नये जिलो की घोषणा के रुप मे सामने आई ।जहा न्ई सीमाओ ने लोगो को अपनो से अलग किया है वहाँ एक अजीब सी न समझ मे आने वाली खुशी का संचार हुआ है।लोग भले ही उस खुशी को विकास के नये अवसर की संज्ञा देते हो लेकिन वह क्षेत्रवाद से ज्यादा कुछ नही है।
धीरज पुन्डीर
No comments:
Post a Comment