Sunday, November 27, 2011

आधा विश्व: आधा विश्व: दुनिया

सजा -ए-मोत से हर कोई बस ईसलिए परिचित नही है कि ईसे हमने अपने आस पास के लोगो को भुगतते देखा है और फिल्मो मे इसी बिन्दु पर हमारी भावनाओ की परिक्षा होती है बल्कि गलत सोच के पीछे लटकती कानून की दिवार हमे कुछ भी नाकाबिले बर्दाश्त करने से रोके रखती है।सजा-ए-मोत पाना किसी शिरफिरे का या मजबुर आदमी का शगल हो तो हो एक आम सामाजिक आदमी इसके विषय मे सोचना तक गुनाह मानता है।इसीलिए अब तक समाज मे संतुलन कायम है वरना सरकार का एक अतिरिक्त काम हो जायगा कि वो सडको से उन लाशो को बटोरती फिरे जिनमे एक छोटी सी बात को लेकर खूनखराबा हो गया था।
इस लेख के संदर्भ मे एक कहावत याद आती है जोकि सदियौ से यूही हमारे बीच प्रचलन मे रही है कि,बिनु भय प्रीत न होये गोपाला।पता नही कि इस सुक्ति को मै सही तरीके से कह पाया हुँ या नही लेकिन भाव समझ लेना काफी है।
अखबारो मे क्राइम के नित नये आकडो को पढकर अनजाना सा भय मन मे अनायास पनप आया।और प्रशासन की दशा दिशा पर एक टिप्पणी मन मे कुलबुलाने लगी।जो चीचे समाज तथा देश के लिए घातक है लेकिन हम उनके अदने से स्वरुप के कारण उन्हे दिनचर्या मे स्वभाविक रुप से होने दे रहे है सामूहिक रुप मे उनका आकार रावण के काल्पनिक रुप से जरा भी कमतर नही है।हम जब मिडिया के स्रोतो से जुटाए आकडो को देखकर भयभीत होते है तब जरा भी अनूमान नही करते कि यह सब हमारी छोटी छोटी भूलो और लापरवाहियो से उपजी समस्याए है।एक बार का वाकिया मेरे साथ हुआ बाईक से मै कही जा रहा था।शाम हो रही थी।एक बिल्कुल बियाबान जंगल मे रास्ते पर दो सिपाही बैठे बीडी फूँक रहे थे।उनके सामने चार लोग तथा दो बाईक और खडी थी।वे चारो भी मेरी तरह मुशाफिर थे।मुझे ही क्या हिन्दूस्तान के बच्चे बच्चे को पता है कि पुलिस सुरक्षा के नाम पर एसी सुनसान जगहो पर वही काम करती है जिसको रोकने के लिए उनको वहा बैठाया जाता है1मेरी बाईक को देखकर उनमे से एक उठा और यह दर्शाता हुआ कि अपनी ड्यूटी के साथ वो ईससे ज्यादा इन्शाफ नही कर सकता वो मेरे पास आया और मुझे यू हाथ देकर रोब से रोका मानो उसके सामने आम पब्लिक के बतोर मेरे जरा भी अधिकार नही थे ।और एसा उसे जताने की आवश्यकता भी नही थी क्योकि हर आदमी पहले से बिना वजह के उनके खोफ के खोफजदा रहता ।मुझसे पहले मोजूद लोग तो बैठे हुए बिल्ली के बच्चे प्रतीत होते थे।"चल कागज निकाल"-वो बोला न अदब न कायदा कुल जमा हिटलरशाही।मैने जो था उसके सामने रख दिया।"बीमा नही है"
"कल ही तो खत्म हुआ है बनवा लूगाँ।"मैने कहा सोचा थोडी इन्शानियत तो उनमे भी होती होगी।
"ज्यादा बकवास करेगा तो जबान खीच लूगाँ।मैने हसकर सोचा जबान तो खीचने से उसे कोई माइ का लाल रोक नही सकता उपर से जबान खीचने की उजरत भी मागेँगा1दोतरफा नुकसान।
फटाफट पैसे निकाल और निकल हमारे पास समय नही।वह दो सो के नोट के ख्वाब पाले बैठा था ।मुझे बडा आन्नद आया के अब मेरी बारी थी और मै एक ही वार मे उसे आसमान से जमीन पर पटक दूगाँ।
"जनाब आप एसा करे कि चालान बुक और पैन निकाले और चालान काटे"-मैने उसके ललचाये चेहरे को देखकर कहा1और उसके चेहरे पर नजर गडाए रखी जब वो सकपकाया तो मैने साफ देखा1
"चालान बुक तो नही है"उसने अपने साथी की तरफ देखा।
"तो आप एसा करे कि थाने का नम्बर दे मै फोन करके मगाँ लेता हूं।"मै बोळा"या मै रुकु"
कहने की जरूरत नही कि फिर क्या हुआ होगा।लेकिन हर बार एसा नही होता मै भी क्इ बार लुटा ओर लोग भी लुटते ही रहते है मलाल यह कि उनके हाथो जो कहने को रक्षक हैं।

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