मेरे बडे भाई उत्तराखण्ड मे रहकर काम करते थे।अभी तीन साल पहले वहाँ गये थे।मै यदा कदा उनके पास घूमने जाया करता तो वे कहा करते कि धीरज तेरे लेखन कार्य के लिये ये पहाडी माहोल अनुकूल है तू यही रहकर कोई अच्छी किताब लिख डाल।मै उनकी व्यापक सोच का कायल था।मैने उनको जवाब दिया था के मै एक दिन जरुर उनके साथ रहने आउँगा क्योकि पहाडो का वह शान्त जीवन एक लेखक के बतोर ही मेरे लिये मुफीद नही था मै वैसे भी उस जीवन को अच्छा मानता था और उसे जीने की मेरी दिली अभिलाषा थी।2011 मे मुझे काम के शिलशिले मे वैसे ही वहाँ जाना ही था।जब मै सतपुली जहाँ वे रहते थे पहुचाँ तो स्वर्ग मे पहुँच जाने शरीखी खुशी हुई थी।भाई ने अपनी जेसीबी मशीन दिखाई जो पहाडो के कठोर सीने को एसे चीरती थी मानो रुई के फाहे अलग कर रही हो।उनके कर्मचारियो ने मुझे सम्मान के साथ बैठेया और पहाडी सब्जियो के साथ स्वादिष्ट खाना खिलाया जिसका स्वाद जीभ आज तक महसूस करती है।अपने दो साझीदारो से परिचय कराते वे बडे खुश थे।काम मे दिनभर भागे फिरते रहना उनका पशंदीदा शगल था।आलश्य का नाम लेना उनको अखरता था।मै चार पाँच रोज उनके पास ठहरकर गाँव लोट आया था।वापसी मे सोच रहा था के पता नही दोबारा इस सुन्दर जगह को देखना कब नसीब हो।घर लोटकर मै अपने काम मे मशगूल हुआ तो पहाड की आबोहवा की गन्ध मानो दिमाग से निकल ग्ई।चार हफ्ते बाद पता लगा कि भाई का किसी के साथ झगडा हो गया है।मैने फोन किया तो उन्होने हसकर टाल दिया।
24अप्रैल 2009 को गाँव मे खबर आई कि भाई का एक्सीडेन्ट हो गया।हम आशंका के मारे फोरन कोटद्वार पहुँते तो पाया के भाई की मोत हो चुकि थी।मै समझ गया कि यह हत्या का मामला हैं क्योकि उनके सब कर्मचारी गायब थे उनके साझीदार भी।घटनास्थल भी अपनी कहानी ब्यानकर रहा था मैने तीन चार दिन बाद हत्या की नामजद रिपोर्ट थाना पोडी गडवाल मे कर दी क्योकि दिलो दिमाग पर जो मेरे चोट हुई थी मै उसका बदला लेना चाहता था लेकिन कानूनी तरीके से मुझे विस्वाष था कि कानून अभी मरा नही है।लेकिन मानो दुनिया का हर आदमी एक भ्रम के साथ जी रहा है बिल्कुल मेरी तरह ।जो दिखाई देता है वास्तव मे वो है ही नही की न्याय।एक दफ्तर से दूसरे तथा एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी की खाक छानते आज तीन साल होने को आये है लेकिन मुझसे उतना ही दूर है जितना कि मेरा मर चुका भाइ।न्याय की कुर्सी पर बैठे लोगो की मानो सवेदना मर चुकि है।वे मेरी भावनाओ को नही समझ सकते और नही ईस तथ्य को कि न्याय आम आदमी का अधिकार है जिसे हर हाल मे आदमी प्राप्त करना चाहेगा।मै अपने म्रत भाइ की आत्मा की शान्ति के लिये न्याय की गुहार हर जगह लगा चुका।अब मेरे पास सिर्फ एक रास्ता बचा है1कि मै उन लोगो कि हत्या कर दू जिन्होने मेरे माँ बाप को खून के आशु रोने पर मजबूर किया है । क्या यह गलत होगा? क्या मुझे भी खून का घूट पीकर बैठ जाना चाहिये? क्या यू बुराई ओर ज्यादा नही बढेगीँ?
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