प्रेम और ईश्क-
फिल्मो मे प्रेम विषय का इस्तेमाल लम्बे समय से ईतनी शिद्दत से होता रहा है कि आज प्रेम की वास्तविक भावना और गरीमा गायब हो ग्ई है।साहित्य के हर रुप मे प्रेम अकेले शीर्षक के रुप मे लोगो के दिमाग पर छाया रहा नतीजा यह की जो लिखा गया या जो फिल्माया गया वो समाज के मानस पर इतने गहरे से छा गया है कि हमने उसकी दिमाग मे तस्वीर बना डाली, लेकिन प्रेम कि उस तस्वीर की भावनात्मक छवि मे वह सबकुछ बिल्कुल भिन्न था जो कि मैने तब महसूस किया जबकि मुझे खुद प्रेम हो गया था।
दसवी क्लास मे लडके और लडकिया ईकट्ठे बैठ सकते थे उससे पहले हमारे देहात के काँलिज मे लडके और लडकियो के बैठने के कमरे अलग 2 होते थे।दसवी का सत्र शुरू होते ही लडको को जैसे पढाई से ज्यादा आकर्षण लडकियो को देखने मे हो गया वे लडकियो को निहारते और लडकिया दबी जुबान मुस्कुराती और आन्नद उठाती थी।हफ्ते भर मे मानो आँखो ही आँखो मे आपस मे तालमेल हो गये।एक समय एसा लगने लगा के जैसे हम छात्र नही किसी रोमान्टिक फिल्म के किरदार थे।सुबह से लेकर छुट्टी होने तक हर लडका लडकी अपने अरमानो को शान्त करने की जुगत मे लगे रहते बस एकमात्र साधन के बूते और वह शाधन आँखो के ईशारे थे।वार्ता की उस नायाब तरकीब का श्रेय आशिको को ही जाता है।बिना एक भी लब्ज का इस्तेमाल किये शारा हाल कह देना कमाल की विधा थी।मै प्रक्रति से उस समय बेहद शर्मीला था।मेरी इसी भावना ने मुझ अकेले को उस फिल्म का एकलोता दर्शक बना दिया।मित्रो का दायरा ईतना लम्बा था के उसमे लगभग क्लास आ जाती थी।मित्रौ ने एक दिन मेरी डायरी पढकर जान लिया के मै लेखन मे रुचि रखता हू।एक बिल्कुल परम मित्र ने आग्रह किया कि मै उसका प्रेम पत्र लिखु।पहले तो सुनकर लगा कि उसने मेरी विधा को मजाक समझ लिया लेकिन यह वास्तव मे एक शिर्षक था।एक परिक्षा भी।मैने लिखा।तीन दिन बाद उसका प्रतिफल मिल गया।लडके का रुका हुआ प्रेम चल पडा।रुठी हूई उसकी प्रेमिका एसी जुडी कि उसको पिँड छुडाना मुश्किल हौ गया।ईधर मेरा प्रेमपत्र लेखक के रुप मे एसा प्रचार हुआ के मै पढाई को वक्त दे पाने मे असमर्थ हो गया। महाना टेस्ट मे लिखते समय प्रेमपत्रो की थीम दिमाग से निकलती ही न थी।एक लडकि जो जिसका नाम पूजा शर्मा था अपने ग्रुप की लडकियो के पास पहूचे हर पत्र को पढती थी।एक दिन खाली क्लास मे आकर मेरे पास बैठ ग्ई।मै उसके यू बेबाकि से आकर बैठ जाने से घबरा गया वह पहला मोका था जब एक लडकी से मै करीब से बात कर रहा था।वे क्षण आज भी मेरे दिल के एक कोने मे बहुत सहेजकर रखे हुए है।"आप लिखते बहुत अच्छा हैं"-उसने कहा उसकी आवाज बहुत प्यारी थी या एक अजनबी लडकी की आवाज होने के कारण और उस भावना के कारण कि दो अजनबी लडका और लडकी मिलेँगे तो मन मे प्रेम के शिवा कोई भावना पैदा नही होगी।अचानक क्लास मे एक साथ क्ई छात्र घुसे और मेरे सुखद क्षणो को विराम लग गया।
अब मेरी जिन्दगी की अचानक ही दिनचर्या बदल ग्ई हालाकि उस लडकी के उस एक वाक्य का उद्देश्य कुछ भी हो सकता था लेकिन प्रेम की सुखद अनुभूति के शिवा मुझे कुछ सूझा ही नही।अब क्लाश मे दूसरे लडको की कतार मे मै खुद खडा था।आँखो से कैसे बात होती है मै भी सीख गया था।पुजा के शिवा दूसरा कोई चेहरा खूबसूरत नही लगता था।दिन मे कम से कम एक बार उषे देखे चैन नही आता था।प्रेम की स्वीकारोक्ति भी मूक भाषा मे हुई।धीरे धीरे एक दूसरे की आदतो से परिचित हुए।बात करने की अभिलाषा दिदार तक सिमट ग्ई।दो साल तक हमारा प्रेम एसे ही चलता रहा।एक वाक्य से ज्यादा बात नही।लेकिन पूर्ण सन्तुष्टि।आज पूजा शर्मा कहाँ है मै नही जानता लेकिन उसका अक उसका पाक प्रेम,उसका कहा वह वाक्य मेरे प्रेम का दस्तावेज मेरे पास सुरक्षित है1आत्मसन्तुष्टि एसी कि उसे न कोई किताब न कोई फिल्म ब्याँ कर सकती है.
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